लकवा का ईलाज

समय पर जरूरी पक्षाघात (लकवा) का इलाज

लकवा एक गम्भीर रोग है| इसमें शरीर का एक अंग मारा जाता है| रोगी का अंग विशेष निष्क्रिय हो जाने के कारण वह असहाय-सा हो जाता है| उसे काम करने या चलने-फिरने के लिए दूसरे के सहारे की जरूरत होती है|

कारण

जब शरीर के किसी भाग में खून उचित मात्रा में नहीं पहुंच पता है तो वह स्थान (अंग) सुन्न हो जाता है| यही लकवा है| इसके अलावा जो व्यक्ति अधिक मात्रा में वायु उत्पन्न करने वाले या शीतल पदार्थों का सेवन करते हैं, उनको भी यह रोग हो जाता है| यह रोग रक्तचाप के बढ़ने, मर्म स्थान पर चोट पहुंचने, मानसिक दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी आदि कारणों से भी हो जाता है| यह तीन प्रकार का होता है - सारे शरीर में पक्षाघात, आधे शरीर में पक्षाघात और केवल मुख का पक्षाघात|

पहचान

यह रोग पुरे शरीर या आधे शरीर की नाड़ियों और छोटी नसों को सुखा देता है जिसके कारण खून का संचार बंद हो जाता है| सिंधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है| अत: विशेष अंग बेकार हो जाता है| रोगी स्वयं उस अंग को चिलाने, फिराने या घुमाते में असमर्थ रहता है| यदि लकवा मुख पर गिरता है तो रोगी के बोलने की क्षमता कम हो जाती है या बिलकुल नहीं रहती| आंख, नाक, कान आदि विकृत हो जाते हैं| दांतों में दर्द होने लगता है| गरदन टेढ़ी हो जाती है| होंठ नीचे की तरफ लटक जाते हैं| चमड़ी पर नोचने से भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता|

नुस्खे

तुलसी के पत्तों को उबालकर उसकी भाप से रोगी के लकवाग्रस्त अंगों की सेंकाई करनी चाहिए|
तुलसी के पत्ते, अफीम, नमक और जरा-सा दही-इन सबका लेप बनाकर अंगों पर थोड़ी-थोड़ी देर बाद लगाएं|
कलौंजी के तेल की मालिश लकवे के रोगी के लिए रामबाण है|
आक के पत्तों को सरसों के तेल में उबालकर शरीर पर मालिश करें|
कबूतर का खून सरसों के तेल में मिलाकर रोगी के शरीर पर मलें|
तिली के तेल में थाड़ी-सी कालीमिर्च पीसकर मिला लें| फिर इस तेल की मालिश लकवे के अंगों पर करें|
सोंठ और उरद (साबुत) - दोनों को 200 ग्राम पानी में उबालें| फिर पानी को छानकर दिन में चार-पांच बार पिएं|
पानी में शहद डालकर रोगी को दिनभर में चार-पांच बार पिलाएं| लगभग 100 ग्राम शहद प्रतिदिन रोगी के पेट में पहुंचना चाहिए|
अजमोद 10 ग्राम, सौंफ 10 ग्राम, बबूना 5 ग्राम, बालछड़ 10 ग्राम तथा नकछिनी 20 ग्राम - सबको कूट-पीसकर पानी में डालकर काढ़ा बना लें| फिर इसे एक शीशी में भरकर रख लें| इसमें से चार चम्मच काढ़ा प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करें|
सरसों के तेल में थोड़े से धतूरे के बीज डालकर पका लें| फिर उस तेल को छानकर अंग विशेष पर मालिश करें|
दूध में एक चम्मच सोंठ और जरा-सी दालचीनी डालकर उबाल लें| फिर छानकर थोड़ा-सा शहद डालकर सेवन करें|
लहसुन की चार-पांच कलियां पीसकर मक्खन में मिलाकर सेवन करें|
छुहारा या सफेद प्याज का रस दो चम्मच प्रतिदिन पीने से पक्षाघात के रोगी को काफी लाभ होता है|

क्या खाएं क्या नहीं

पक्षाघात के रोगी को गेहूं की रोटी, बाजरे की रोटी, कुलथी, परवल, करेला बैंगन, सहिजन की फली, लहसुन, तरोई आदि देनी चाहिए| फलों में पपीता, आम, फालसा, अंजीर, चीकू आदि बहुत लाभदायक है| दूध का उपयोग सुबह-शाम दोनों वक्त करना चाहिए| चावल, दही, छाछ, बर्फ की चीजें, तले हुए पदार्थ, दालें, बेसन, चना आदि नहीं खाना चाहिए| वायु उत्पन्न करने वाले फल तथा साग न खाएं|

शरीर पर सरसों का तेल, विषगर्भ तेल, तिली का तेल, निर्गुण्डी का तेल, बादाम का तेल या अजवायन का तेल मालिश के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए| यदि रक्तचाप बढ़ा हुआ हो तो सर्पगंधा नामक जड़ी खानी चाहिए| एरण्ड का तेल, चोपचीनी का चूर्ण तथा हरड़-बहेड़ा-आंवला (त्रिफला) भी पक्षाघात के रोगी के लिए बहुत लाभदायक है|

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